दलहन उत्पादन में देश बनेगा आत्मनिर्भर, पंत विवि द्वारा अब तक 70 से अधिक प्रजातियां विकसित

इण्टरनेषनल सेंटर फाॅर एग्रीकल्चरल रिसर्च इन ड्राई एरियास, सिहोर, भोपाल में 02-04 सितम्बर, 2024 को सम्पन्न हुई अखिल भारतीय रबी दलहन परियोजना की वार्षिक बैठक में पन्तनगर विष्वविद्यालय द्वारा विकसित रबी दलहनों की तीन प्रजातियों को किसानों के मध्य उगाये जाने हेतु जारी करने का निर्णय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेषक डा. टी.आर. षर्मा की अध्यक्षता में हुई प्रजातियां विमोचन समिति की बैठक में लिया गया।

इस वर्ष विभिन्न रबी दलहनी किस्मों की देष के विभिन्न कृषि विष्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विभिन्न संस्थानों की जिन सात प्रजातियों को जारी करने का निर्णय लिया गया उनमें से तीन प्रजातियां पंत मसूर 16, पंत मटर 509 एवं पंत मटर 517 इस विष्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी।

रबी दलहनों की इन प्रजातियों को अखिल भारतीय स्तर पर उगाये जाने हेतु चिन्हित किये जाने पर विष्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इन प्रजातियों को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों डा. आर.के. पंवार, डा. एस.के. वर्मा, डा. अन्जू अरोरा तथा परियोजना में कार्यरत समस्त कर्मियों को बधाई दी। डा. चौहान द्वारा बताया गया कि इस विष्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनों की 70 से अधिक प्रजातियां देष के विभिन्न भागों के लिये विकसित की जा चुकी है तथा जिसमें से कुछ जैसे मसूर की पंत मसूर 8 एवं पंत मसूर 9, चने की पंत चना 186, मटर की पंत मटर 14, पंत मटर 243, अरहर की यू.पी.ए.एस. 120 एवं पंत अरहर 6, उर्द की पंत उर्द 31 एवं पंत उर्द 12 तथा मूंग की पंत मूंग 5 एवं पंत मूंग 9 किसानों की पहली पसन्द बनी हुई है।

उन्होंने बताया कि विगत वर्ष भी इस विष्वविद्यालय द्वारा रबी दलहनों की सात प्रजातियों को विकसित किया गया जिनमें से तीन प्रजातियों पंत चना 10, पंत मसूर 14 तथा पंत मटर 484 को अभी हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किसानों को समर्पित किया गया जोकि इस विष्वविद्यालय का देष के कृषि विकास के लिये समर्पण का प्रतीक है।

डा. चौहान ने यह भी बताया कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2027 तक देष को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस विष्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी उन्नत प्रजातियों एवं उनकी उत्पादन तकनीकों का देष के दलहन उत्पादन को बढ़ाने में एक अहम योगदान है जोकि वर्तमान में बढ़कर 26 मिलियन टन हो गया है, जिससे ना केवल प्रति व्यक्ति दालों की उपलब्धता बढ़ी है बल्कि कीमतों में भी नियंत्रण रहा है। विष्वविद्यालय के निदेषक षोध डा. नैन ने बताया कि विष्वविद्यालय का छोटे एवं सीमान्त किसानों की आय बढ़ाने पर विषेष जोर है।

डा. नैन द्वारा बताया गया कि यह विष्वविद्यालय ना केवल दलहनों की उन्नत प्रजातियां विकसित करने में अव्वल है बल्कि इन प्रजातियों की पर्याप्त मात्रा में प्रजनक बीजों को उत्पादित करने में अग्रणी है। उन्होंने बताया कि विगत पांच वर्षों में विष्वविद्यालय द्वारा विभिन्न दलहनी के फसलों के लगभग 2000 कुन्तल प्रजनक बीज का उत्पादन किया गया।

परियोजना समन्वयक डा. एस.के. वर्मा द्वारा बताया गया कि रबी दलहनों की इस वार्षिक बैठक में चिन्हित की गयी मसूर की प्रजाति पंत मसूर 16 को देष के उत्तरी पहाड़ी राज्यों जैसे उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेष, जम्मू एवं कष्मीर, पष्चिमी बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र, असम एवं अन्य उत्तरी पूर्वी राज्यों, पंत मटर 517 को देष के उत्तरी पष्चिमी राज्यों जैसे पष्चिमी उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड के मैदानी क्षेत्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं जम्मू सम्भाग तथा पंत मटर 509 को उत्तरी पूर्वी राज्यों जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेष, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, पष्चिमी बंगाल में उगाये जाने हेतु संस्तुत किया गया।

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