(पंत विश्वविद्यालय की बड़ी उपलब्धि) पारंपरिक ट्रांसफार्मरों की खराबी से मिलेगा छुटकारा। विद्युत वितरण तकनीक (डी.टी.एम.एस.) पर मिला पेटेंट।

पन्तनगर विष्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान के कुषल नेतृत्व में एक नया पेटंेट प्राप्त हुआ है।

प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में विद्युत अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर डा. रवि सक्सेना द्वारा वितरण ट्रांसफार्मर निगरानी प्रणाली (डी.टी.एम.एस.) तकनीक विकसित की गयी है।

इस तकनीक को विष्वविद्यालय के बौद्धिक संपदा प्रबंधन केन्द्र की सलाह पर भारत सरकार द्वारा पेटेंट (पेटेंट संख्या 544948 दिनांक 15 जुलाई 2024) प्रदान किया गया है। कुलपति ने डा. रवि सक्सेना और बौद्धिक संपदा प्रबंधन केन्द्र के सीईओ डा. जे.पी. मिश्रा को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है।

डा. रवि सक्सेना ने बताया कि वितरण ट्रांसफार्मर (डीटी) विद्युत ऊर्जा वितरण प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। इसका कार्य वितरण लाइनों में प्रयुक्त वोल्टेज को उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्तर को कम करना है। देष में पारंपरिक ट्रांसफार्मरों की विफलता दर बहुत अधिक है, जोकि राज्य विद्युत बोर्डों में लगभग 16 प्रतिषत है, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानकों 1 से 2 प्रतिषत की तुलना में बहुत अधिक है।

इसके अलावा इन पारंपरिक ट्रांसफार्मरों का कार्यकाल भी बहुत कम (6-8 वर्ष) है। सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत बड़ी संख्या में वितरण ट्रांसफार्मर असंतुलित लोडिंग स्थितियों के कारण खराब दक्षता से ग्रस्त है, जिससे उपभोक्ताओं को विद्युत आपूर्ति में रूकावट आती है और ट्रांसफार्मर की विफलता का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगिता कम्पनियों की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पडता है।

डा. सक्सेना ने बताया कि इस तकनीक से ओवरलोड के कारण खराब होने से पहले ट्रांसफार्मरों की पहचान कर उनकी सुधारात्मक कार्यवाही की जा सकती हैं, कम वोल्टेज बिजली नेटवर्क की दृष्यता में सुधार और उपयोगिता कम्पनियों को ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाली बिजली देने में मदद करेगा।

कम्पनियों के अलावा उद्योगपति, किसान, ग्रामीण और शहरी उपभोक्ता इस तकनीक से लाभांवित होंगे और विशेष रूप से किसान क्योंकि फसल के मौसम में महत्वपूर्ण अवधि के दौरान ट्रांसफार्मर के खराब होने से फसलों की उत्पादन प्रक्रिया प्रभावित होती है।

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