पन्तनगर विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में सस्य विज्ञान विभाग के संकाय उच्च अध्ययन केन्द्र में आज प्राकृतिक खेती से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा पर 21-दिवसीय प्रषिक्षण का समापन समारोह सपन्न हुआ। इस अवसर पर प्रषिक्षण समन्वयक डा. ओमवती वर्मा ने संकाय उच्च अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित 44वीं प्रषिक्षण को सफल बनाने हेतु समारोह में सभी उपस्थित अगंुतकांे का स्वागत किया।

संकाय उच्च अध्ययन केन्द्र के निदेषक एवं विभागाध्यक्ष डा. सुभाश चन्द्रा ने समापन भाशण देते हुए कहा कि इस उच्च अध्ययन केन्द्र की स्थापना 1994 में हुयी थी और इसके माध्यम से अब तक लगभग 800 से भी अधिक वैज्ञानिकों को प्रषिक्षित किया जा चुका है। डा. महेन्द्र सिंह पाल प्राध्यापक सस्य विज्ञान ने बताया कि वर्तमान युग में देष के कृशि सम्बन्धित समस्याओं को देखते हुये नई कृशि पद्धति की जरूरत है जिसमें प्राकृतिक कृशि एक अहम भूमिका अदा करती है।
प्राकृतिक खेती, कृशि की एक ऐसी विधि है जो मानव स्वास्थ्य से लेकर किसानों की आय से सम्बन्धित सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता रखती है। यह हमारे समृद्ध पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है और स्थानीय रूप से उपलब्ध कृषि पद्धति पर आधारित है। इसलिए इस महत्वपूर्ण विशय पर प्रषिक्षण का आयोजन कर वैज्ञानिकों को प्राकृतिक कृशि एवं उसको सम्पन करने हेतु निर्धारित तकनीकियों से वैज्ञानिकों को अवगत करना सार्थक है जिससे इस विधा का उचित प्रचार एवं प्रसार हो सके।
डा. पाल ने प्रषिक्षण की विभिन्न विशयों पर आधारित रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस प्रषिक्षण के दौरान दिए गए व्याख्यानों को 90 प्रतिषत से अधिक प्रषिक्षिणार्थियों ने उत्तम एवं अच्छा बताया और पिछले वर्शांे के प्रषिक्षणों से तुलना करने पर यह प्रषिक्षण अधिक प्रभावी पाया गया। प्रषिक्षण मंे भाग लेने हेतु आये प्रषिक्षणाथर््िायों ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुये कहा कि इस प्रषिक्षण में दिये गये व्याख्यानोें से उनको काफी हद तक नयी प्राकृतिक खेती की जानकारियां मिली, साथ ही सभी प्रषिक्षणार्थी, प्रषिक्षण के दौरान की गयी रहन-सहन की एवं खान-पान व्यवस्था से अत्यन्त सन्तुश्ट थे।
कृशि महाविद्यालय के अधिश्ठाता डा. षिवेन्द्र कष्यप ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्राकृतिक कृशि भारतवर्श की धरोहर है। प्राकृतिक खेती का आशय पद्धति, प्रथाओं और उपज में वृद्धि संबंधी प्राकृतिक विज्ञान से है ताकि कम साधनों में अधिक उत्पादन किया जा सके तथा इसके लिए प्राकृतिक कृशि को बढावा देने के लिए वैज्ञानिक को षोध की आवष्यकता है। इस प्रषिक्षण में पूरे भारतवर्श से 14 कृशि वैज्ञानिकों ने प्रतिभाग किया प्रषिक्षणोपरान्त उन्हे प्रषिक्षण प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
अंत में डा. राजीव कुमार ने सभी आगन्तुकांे को धन्यवाद किया और आभार व्यक्त किया। प्रषिक्षण के समापन समारोह में अधिश्ठाता छात्र कल्याण डा. एस.एस. जीना, निदेषक प्रषिक्षण एवं सेवायोजन डा. एम.एस. नेगी समस्त सस्य विज्ञान विभाग के संकाय सदस्य एवं महाविद्यालय के संकय सदस्य उपस्थित रहे।