हैदराबाद स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्ध-षुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान केन्द्र (ईक्रीसेट) में 27 से 29 मई 2024 को आयोजित की गयी खरीफ दहलनों की वार्षिक बैठक में पन्तनगर विष्वविद्यालय को देष में विभिन्न दलहनी फसलों की अधिक पैदावार देने वाली रोग एवं कीट रोधी प्रजातियों के विकास एवं उनकी उत्पादन तकनीकें किसानों को उपलब्ध कराये जाने में उत्क्रष्ठ योगदान हेतु सर्वोत्तम रिसर्च सेन्टर का पुरस्कार दिया गया।
विष्वविद्यालय को खरीफ दलहनों के लिये सर्वोत्तम षोध संस्थान पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर विष्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चैहान द्वारा खुषी व्यक्त करते हुए परियोजना में कार्यरत समस्त वैज्ञानिकों एवं कर्मचारियों को बधाई दी।
साथ ही बताया कि अपने स्थापना के बाद से ही इस विष्वविद्यालय द्वारा विभिन्न फसलों की विकसित प्रजातियां देष के किसानों के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय है तथा इस विष्वविद्यालय का देष को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में विषेष योगदान रहा है और इसी कारण इस विष्वविद्यालय को हरित क्रान्ति की जननी भी कहा गया है। उनके द्वारा यह भी बताया गया कि वर्तमान में विष्वविद्यालय कृषि के क्षेत्र में छोटे एवं सीमान्त किसानों को खेती में लाभदायक बनाने में संबंधित षोध कार्यों पर विषेष जोर दे रहा है।
कुलपति द्वारा परियोजना में कार्यरत समस्त वैज्ञानिकों डा. रमेष चन्द्रा, डा. रविन्द्र पंवार, डा. एस.के. वर्मा, डा. नवीनत पारेक, डा. अन्जू अरोरा, डा. के.पी.एस. कुषवाहा, डा. एल.बी. यादव, डा. रूचिरा तिवारी, डा. मीना अग्निहोत्री, डा. जे.पी. पुरवार, डा. वी.के. सिंह एवं डा. डी.के षुक्ला को इस उपलब्धि के लिये बधाई दी।
विष्वविद्यालय द्वारा दलहन उत्पादक किसानों के लिये एक से बढ़कर उन्नत किस्म की अब तक 67 से अधिक उपज देने वाली रोग रोधी प्रजातियों के साथ-साथ उनकी उत्पादन तकनीकों का विकास किया गया है बल्कि पर्याप्त मात्रा में बीज उत्पादित कर किसानों को उपलब्ध भी कराया गया है।
विगत 5 वर्षों में विष्वविद्यालय द्वारा विभिन्न दलहनी फसलों की 27 उन्नत प्रजातियों को विकसित कर किसानों को उपलब्ध कराया गया है, जिनमें से 14 प्रजातियां अखिल भारतीय स्तर पर उगाये जाने हेतु कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संस्तुत की गयी है। विगत वर्ष ही विष्वविद्यालय द्वारा विभिन्न दलहनी फसलों की सात प्रजातियां देष के विभिन्न भागों में किसानों द्वारा उगाये जाने हेतु संस्तुत की गयी है। विष्वविद्यालय के निदेषक षोध डा. ए.एस. नैन द्वारा बताया गया कि देष के दलहन उत्पादन में पन्तनगर विष्वविद्यालय द्वारा विकसित प्रजातियों का विषेष योगदान रहा है।
विष्वविद्यालय द्वारा किसानों को समय पर उन्नत किस्मों की बीज पर्याप्त मात्रा में उत्पादित कर उपलब्ध कराये जा रहे है जिससे देष दलहन उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। वर्ष 2014-15 तक देष में कुल दलहनों का उत्पादन लगभग 15-16 मिलियन टन ही था जोकि देष की आबादी की दलहन आवष्यकता को पूरा करने में नाकाफी था तथा विभिन्न दलहनों का सरकार को ना केवल आयात करना पड़ता था बल्कि ऊँची कीमतों एवं कम उपलब्धता के कारण जनमानस में भी व्यापक असंतोष रहता था। वर्तमान में देष का कुल दलहन उत्पादन वर्ष 2022-23 में 26 मिलियन टन था।
देष में दलहन के उत्पादन को बढ़ाने में विष्वविद्यालय द्वारा विकसित प्रजातियों का विषेष स्थान रहा है। यहां विकसित दलहन की कुछ प्रजातियां जैसे अरहर की यूपीएएस 120 एवं पन्त अरहर 291, चने की पन्त चना 186, उर्द की पन्त उर्द 31 एवं पन्त उर्द 12, मूंग की पन्त मूंग 5, मसूर की पन्त मसूर 406, पन्त मसूर 639, पन्त मसूर 4, पन्त मसूर 5, पन्त मसूर 8 एवं पन्त मसूर 12 तथा मटर की पन्त मटर 13, पन्त मटर 14, पन्त मटर 243, पन्त मटर 250 देष के किसानों के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय है।
दहलन परियोजना समन्वयक डा. एस.के. वर्मा ने बताया कि वर्तमान में विभिन्न दलहनों की रोग एवं कीट रोधी अधिक उपज देने वाली ऐसी प्रजातियों के विकास पर जोर दिया जा रहा है जो बदलती जलवायु, घटते जलस्तर एवं भविष्य की आवष्यकताओं के अनुरूप हो।