आईसीएआर जनजातीय उप-योजना 2024 – 25 का हुआ हरिपुरा गांव, गुदरपुर में सफल आयोजन

पन्तनगर विष्वविद्यालय में आईसीएआर जनजातीय उप-योजना 2024-25 के तहत ‘उत्तराखंड की जनजातीय महिलाओं की सतत आजीविका और आर्थिक सशक्तिकरण हेतु कृषि और डेयरी उत्पादों के मूल्य संवर्धन के माध्यम से तकनीकी हस्तक्षेप’ परियोजना का सफल आयोजन हरिपुरा गांव, गुदरपुर में किया गया।

इस पहल का उद्देश्य जनजातीय महिलाओं को कृषि और डेयरी उत्पादों के मूल्य संवर्धन तकनीकों से परिचित कराना है, जिससे वे उद्यमिता को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकें। इस पहल के तहत ‘जैविक गुड़, गन्ना, मिलेट, सेवई, पास्ता, गुझिया, शहद और उनके विपणन के माध्यम से जनजातीय समुदाय को सशक्त बनाना ’ विषय पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम का उद्घाटन अधिष्ठाता, छात्र कल्याण डा. ए.एस. जीना और संयुक्त निदेशक, सामुदायिक विज्ञान, केवीके, काशीपुर डा. प्रतिभा सिंह ने संपन्न किया। इस अवसर पर श्रीमती बिंदुवासिनी, परियोजना निदेशक, सोशल डेवलपमेंट संस्थान एवं ग्राम प्रधान हिमांशु गोस्वामी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समन्वय डा. अर्पिता शर्मा कांडपाल, परियोजना प्रमुख द्वारा किया गया।


डा. ए.एस. जीना ने कहा कि यह प्रशिक्षण महिलाओं को स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्चे माल का उपयोग कर विपणन योग्य उत्पाद बनाने और सतत व्यवसाय मॉडल विकसित करने में सहायता करेगा। उन्होंने जैविक गुड़ और गन्ना उत्पादन, मिलेट-आधारित उत्पादों के पोषण लाभ और उनके बाजार संभावनाओं पर विस्तृत व्याख्यान दिया।

उन्होंने जैविक खेती और सतत प्रसंस्करण तकनीकों के महत्व को रेखांकित किया, जिससे किसानों और उद्यमियों को दीर्घकालिक लाभ प्राप्त हो सके। डा. प्रतिभा सिंह ने आधुनिक कृषि अर्थव्यवस्था में मूल्य संवर्धन की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि प्रसंस्करण और ब्रांडिंग के माध्यम से कृषि उत्पादों की लाभप्रदता में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है।

उनके व्याख्यान में सेवई, पास्ता और पारंपरिक मिठाइयाँ जैसे गुजिया बनाने की तकनीकें शामिल थीं। उन्होंने गुड़ और शहद आधारित उत्पादों की गुणवत्ता मूल्यांकन पर भी चर्चा की तथा स्वच्छता, पैकेजिंग और भंडारण तकनीकों के माध्यम से उत्पाद की गुणवत्ता और शेल्फ लाइफ बढ़ाने के व्यावहारिक प्रदर्शन किए। उन्होंने जैविक और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादों की बढ़ती उपभोक्ता मांग का उल्लेख करते हुए महिलाओं को इस क्षेत्र में व्यावसायिक अवसर तलाशने के लिए प्रेरित किया।


श्रीमती बिंदुवासिनी ने इस पहल को एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि यह प्रशिक्षण जनजातीय महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होगा। ग्राम प्रधान हिमांशु गोस्वामी ने कहा कि इस प्रकार की पहल गांव की महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस अवसर पर डा. अर्पिता शर्मा कांडपाल ने परियोजना के मुख्य उद्देश्य को दोहराते हुए जनजातीय महिलाओं को उनके स्वयं के उद्यम स्थापित करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई।

उन्होंने प्रतिभागियों को अपने गांवों में लघु उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता एवं वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए इस प्रशिक्षण का अधिकतम लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि उत्पादों के प्रभावी विपणन में सहायता हेतु निरंतर मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान किया जाएगा।


इस कार्यक्रम में विष्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया, जिनमें पूजा गोस्वामी, आकांक्षा जोशी, विकास कुमार और अदिति पाठक शामिल थे।
कार्यक्रम का समापन एक इंटर एक्टिव सत्र के साथ हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए और व्यापार विकास, विपणन रणनीतियों और वित्तीय सहायता पर विशेषज्ञों से सलाह ली।

आगे भी प्रशिक्षुओं को उनके उद्यमों को आगे बढ़ाने में सहायता हेतु निरंतर मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा। आईसीएआर जनजातीय उप-योजना के तहत इस प्रकार की पहल ग्रामीण उद्यमिता, वित्तीय समावेशन और उत्तराखंड के जनजातीय समुदायों में महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएगी।

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