पन्तनगर विष्वविद्यालय के चारा ब्लाक, आईडीएफ, नगला पर कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा भ्रमण किया गया जहां पर चारे की विभिन्न फसलें यथा नेपियर घास, रेमी घास, रोडे, गिनिया, ब्लूपेनिक, ब्रूम, पैरा, स्पीयर, अजोला तथा चारे के लिए विभिन्न पेड़ जैसे सूबबूल, दषरथ, बकाईन, सैलिक्स, प्रोसोपिस ज्योलिफ्लोरा, मोरिंगा आदि लगाये गये है।
नेपियर घास जैविक और रासायनिक दोनों विधियों से उगायी जा रही है। कुलपति ने भ्रमण के दौरान बताया कि रेमी घास चारे के लिए ही नहीं बल्कि एक मजबूत रेषे के लिए भी अच्छी मानी जाती है। रेमी घास पर पन्तनगर कृषि विष्वविद्यालय में शोध राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के सहयोग से प्रारम्भ किया गया। यह घास असम में उगायी जाती है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है और पानी मिलता है इसकी वानस्पतिक वृद्धि तीब्र गति से होती है।
उन्होंने कहा कि विष्वविद्यालय के सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में इसके रेषे की गुणवत्ता की परख के लिए शोध कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है और इसके रेषे की मजबूती के मद्देनजर कपड़ा उद्योग में इसके प्रयोग की बहुत अधिक संभावना है। उनके द्वारा मोरिंगा की पोष्टिक गुणवत्ता पर प्रकाष डालते हुए इसकी खेती को भी वृहद स्तर पर किये जाने हेतु बल दिया गया। कुलपति ने कहा कि हमारे देष में 38 प्रतिषत चारे की कमी है अतः चारे वाली विभिन्न फसलों की उत्पादकता को बढ़ाये जाने की अत्यंत आवष्यकता है साथ ही अजोला पर और अधिक कार्य किये जाने की भी आवष्यकता है।
कुलपति द्वारा डा. एम.एस. पाल, प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, सस्य विज्ञान एवं उनकी टीम द्वारा चारे पर किये जा रहे कार्यों की सराहना की गयी। इस अवसर पर विष्वविद्यालय के निदेषक शोध डा. ए.एस. नैन, अधिष्ठाता कृषि डा. ए.के. कष्यप, अधिष्ठाता पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय डा. एस.पी. सिंह, अधिष्ठाता सामुदायिक महाविद्यालय डा. अल्का गोयल, निदेषक संचार डा. जे.पी. जायसवाल, संयुक्त निदेषक आईडीएफ डा. एस.के. सिंह, संयुक्त निदेषक शोध डा. अनिल यादव आदि उपस्थित थे।