पन्तनगर विष्वविद्यालय के डा. वाई.एल. नेने वृक्षायुर्वेद अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण केंद्र में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा पोषित चार-दिवसीय प्राकृतिक खेती आधारित प्रशिक्षण में कृषि वैज्ञानिक और किसान मास्टर ट्रेनरों ने आज दूसरे दिन मिट्टी में जैव विविधता का महत्त्व और डेयरी का प्राकृतिक खेती में संयोजन के गुण सीखे।

मृदा वैज्ञानिक डा. पूनम गौतम द्वारा मिट्टी की उर्वरता में सूक्ष्म जीवों के योगदान और पौधों के उत्पादकता बढ़ाने में कैसे सहायक हैं पर व्याख्यान दिया। डा. अजय कुमार उपाध्याय, प्राध्यापक, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय ने उल्लेख किया कि किस प्रकार पशुधन उत्पादकता और पर्यावरण संतुलन को बढ़ाने में मदद करता है।
उन्होंने बताया कि दक्षिण एशिया ‘धान-गोबर मॉडल’ पर काम करता है, जो मिट्टी को प्राकृतिक उर्वरता प्रदान करता है। डा. राजीव कुमार, प्राध्यापक, सस्य विज्ञान विभाग ने आवश्यक फसल प्रणाली चयन और पारंपरिक खेती से प्राकृतिक खेती में रूपांतरण की प्रक्रिया के बारे में बताया। डा. हार्दिक एन. लखानी, प्राकृतिक खेती विशेषज्ञ, मैनेज हैदराबाद, भारत सरकार के पर्यवेक्षक के रूप में सम्मिलित हुए।
उन्होंने सुझाव दिया कि उत्तराखंड के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों को प्राकृतिक खेती से जुड़ना चाहिए और इस ज्ञान को किसानों तक पहुंचाना चाहिए। अंततः सभी प्रतिभागियों ने डा. सुनीता टी. पांडे, नोडल अधिकारी के साथ प्राकृतिक खेती प्रयोगात्मक स्थल का दौरा किया, कुणाप जल बनाने की विधि सीखी और जैविक किण्वन इकाई प्रदर्शन को भी देखा।